दन्तेवाड़ा- वर्तमान में दन्तेवाड़ा के आदिवासी की धार्मिक मान्यताएं उनके अपने पुरातन विश्वासो एवं हिन्दुओं के निकट संपर्क से पड़े प्रभाव का मिलाजुला बहुत ही जटिल स्वरूप है। दन्तेवाड़ा का क्षेत्र बड़ा और अनेक विविधता लिये है कि किसी एक देवी-देवता को धारण करना सम्पूर्ण दन्तेवाड़ा पर लागू करना बहुत कठिन होगा। यहाँ के निवासियों में आज भी विशुद्ध आदिवासी विश्वासों से लेकर हिन्दु मान्यताओं के मिश्रण के अनेक चरण एक साथ देखे जा सकते है। जिसमें यहाँ के आदिवासियों के गांव या घर में बने देवगुड़ी में मूर्तियां आवश्यक अंग नही है, अधिकांश आदिवासी देवगुड़ी में देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व कोई अनघढ़ पत्थर, लकड़ी, लोहा, धातु का टुकड़ा अथवा शंख, कौढ़ी या घंटी जैसी कोई वस्तु की प्रतिमा बना कर इनकी पूजा किया जाता है।
गुड़ी का अर्थ मंदिर होता है और जहाँ देवी-देवता विराजते है उसे माता गुढ़ी या देवगुड़ी कहा जाता है। गांव में देवगुड़ी को उनके पूजे जाने के स्थान से भी जाना जाता है। देवगुड़ी में पूजे जाने वाली देवी को भूमिहार कहा जाता है। घर के देव स्थान में पूजे जाने वाली देवी गोंडिन देवी और जगंल में वृक्षों के झुरमुट में बनाये देवी के स्थान को गादीमाई एवं गांव के बाहर देवता को भीमा डोकरा कहा जाता है। जिसमें दन्तेवाड़ा के गांव में मातृ देवियां की प्रमुखता है, सभी गांव में एक-एक देवगुड़ी की स्थापना किया गया है। गांव के सभी देवगुड़ी में किसी ना किसी देवी-देवताओं को बसाहट देवगुड़ी के रूप में देखा जा सकता है। जैसे फरसपाल के देवगुड़ी में गुजे डोकरी और परदेशीन माता विराजमान है। ऐसे अनेक देवगुड़ी में माताओं यहां की प्रमुख माता दन्तेश्वरी और मावली माता है। अन्य माताएं हिगंलाजन माता, परदेशी माता, गुजे डोकरी, डोंगरी माता, भण्डारिन माता, जलनी माता, झारान्दपुरीन माता, आंगा देव, इसके अतिरिक्त अन्य देवी-देवता भी शामिल है। ग्राम स्तर देवी-देवता आमतौर पर पाट देव के आंगा ग्राम स्तर के होते है, जिनकी मान्यता ग्राम विशेष में होती है। पारिवारिक देवी-देवता यह आवश्यक नही की प्रत्येक परिवार का अपना व्यक्तिगत देवी-देवता हो पर अनेक परिवारों (एक गोत्र के सभी कुटुम्बियों) का अपना देवता होता है। जिसकी वे पूजा करते है।
गांव के देवगुड़ी में प्रति वर्ष जात्रा, मढ़ई मनायी जाती है, जात्रा के दिन ग्रामवासि मनौतियां पूरी हाने पर भक्तों द्वारा देवी-देवताओं पर चढ़ाया जाने वाला चढ़ावा मुर्गी, बकरे, सुअर आदि होता है। देवगुड़ी में गांव के सिरहा, गुनिया या पुजारी के द्वारा पूजा सम्पन्न करवाया जाता है। और जात्रा में देवी-देवता का प्रतिनिधित्व उनकी मूर्तिया नही बल्कि डोली, बैरक, आंगा, छत्र, नगाढ़ा आदि करते है।
गांव के देवगुड़ी में प्रति वर्ष जात्रा, मढ़ई मनायी जाती है, जात्रा के दिन ग्रामवासि मनौतियां पूरी हाने पर भक्तों द्वारा देवी-देवताओं पर चढ़ाया जाने वाला चढ़ावा मुर्गी, बकरे, सुअर आदि होता है। देवगुड़ी में गांव के सिरहा, गुनिया या पुजारी के द्वारा पूजा सम्पन्न करवाया जाता है। और जात्रा में देवी-देवता का प्रतिनिधित्व उनकी मूर्तिया नही बल्कि डोली, बैरक, आंगा, छत्र, नगाढ़ा आदि करते है।