मजदूरों से गुलामी का खुलासा: रायपुर की मशरूम फैक्ट्री में मानवाधिकार हनन का मामला

प्रादेशिक मुख्य समाचार

रायपुर। रायपुर के खरोरा इलाके में मानवता को शर्मसार करने वाला एक सनसनीखेज मामला सामने आया है, जहाँ एक मशरूम बनाने वाली कंपनी में दूसरे राज्यों से लाए गए मजदूरों को बंधक बनाकर उनसे जानवरों की तरह काम लिया जा रहा था। जब मजदूर अपनी मेहनत की कमाई मांगते तो कंपनी के संचालक उनकी बुरी तरह पिटाई करते थे। इस नर्क से किसी तरह भागकर रायपुर पहुंचे कुछ मजदूरों की शिकायत के बाद पुलिस और प्रशासन की टीम ने छापा मारकर 97 मजदूरों को मुक्त कराया है, जिनमें 47 नाबालिग हैं।

हालांकि, इस गंभीर मामले में देर रात तक कंपनी संचालकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिससे प्रशासन की भूमिका पर भी गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।

यह पूरा मामला तब खुला जब जौनपुर (यूपी) निवासी गोलू और रवि अपने परिवार के साथ 2 जुलाई को किसी तरह कंपनी से भाग निकले। उन्होंने बताया कि वे लगभग 20 किलोमीटर पैदल चलकर रायपुर बस स्टैंड पहुंचे। वहां कुछ लोगों की मदद से वे एसपी कार्यालय पहुंचे और अपनी आपबीती की लिखित शिकायत दर्ज कराई।

पीड़ितों ने बताया कि जौनपुर के ही विपिन तिवारी, विकास तिवारी और नितेश तिवारी, जो खुद को कंपनी का संचालक बताते हैं, ने उन्हें और उनके रिश्तेदारों को 2 जून को काम दिलाने के बहाने रायपुर बुलाया था। यहां खरोरा स्थित उमाश्री राइस मिल परिसर में चल रही मोजो मशरूम कंपनी में पहुंचते ही सबसे पहले उनके मोबाइल फोन छीन लिए गए और उन्हें दुनिया से पूरी तरह काट दिया गया।

छुड़ाए गए मजदूरों ने फैक्ट्री के अंदर के नर्क जैसे हालातों का खुलासा किया। उन्हें आधी रात 2 बजे उठाकर जबरन काम पर लगा दिया जाता था और दिन में सिर्फ दो बार खाना नसीब होता था, पहला दोपहर 3 बजे और दूसरा दोबारा काम पर लगने से पहले रात 2 बजे। किसी भी मजदूर को कंपनी परिसर से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी, जिससे वे पूरी तरह बंधक बने हुए थे। इससे भी भयावह यह था कि जब भी कोई मजदूर अपने वेतन के पैसे मांगता, तो संचालक विपिन तिवारी, विकास तिवारी और नितेश तिवारी उनके साथ बेरहमी से मारपीट करते थे। विपिन तिवारी पर तो बेलचे से पीटने का भी गंभीर आरोप है।

शिकायत मिलते ही जिला प्रशासन और पुलिस की एक संयुक्त टीम ने कंपनी पर छापा मारा। मौके का दृश्य भयावह था। वहां पुरुषों और महिलाओं के साथ 47 नाबालिग बच्चे भी बंधक बनाकर रखे गए थे। टीम ने सभी 97 लोगों को वहां से छुड़ाकर रायपुर के इंडोर स्टेडियम में ठहराया है। देर रात तक सभी के बयान दर्ज किए गए। बाल कल्याण समिति (CWC) की टीम ने नाबालिगों से अलग से पूछताछ की। कई महिलाओं और नाबालिगों ने अपने साथ बदसलूकी की भी शिकायत की है।

इस पूरे मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इतने गंभीर अपराध के बावजूद कंपनी संचालकों पर देर रात तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई। महिला बाल विकास विभाग की डीपीओ शैल ठाकुर ने छापे की पुष्टि करते हुए बताया कि सूचना के आधार पर पुलिस की मदद से यह कार्रवाई की गई।

वहीं, स्थानीय सूत्रों से एक और बड़ी जानकारी सामने आ रही है। भले ही विपिन, विकास और नितेश तिवारी खुद को संचालक बता रहे हों, लेकिन मोजो मशरूम की असली प्रोपराइटर शहर की एक बड़ी हस्ती मोनिका खेतान हैं, जिनका नाम FIR या किसी भी आधिकारिक बयान में नहीं लिया जा रहा है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस मामले को रसूख के दम पर दबाने और असली गुनहगारों को बचाने की कोशिश की जा रही है।

यह पहली बार नहीं है जब मोजो मशरूम और उमाश्री राइस मिल का नाम विवादों में आया है। स्थानीय ग्रामीणों ने पहले भी मजदूरों के शोषण और फैक्ट्री द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण की शिकायत की थी। ग्रामीणों का आरोप है कि प्लांट से मानक से कहीं ज़्यादा कार्बन-डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। फैक्ट्री का रासायनिक युक्त गंदा पानी बिना फिल्टर किए सीधे नालों में बहा दिया जाता है, जिससे भूजल और पेयजल स्रोत जहरीले हो गए हैं। ठोस रासायनिक कचरे को गांव में खुले में फेंका जाता है, जिसे खाकर मवेशियों की मौत हो रही है। इस प्रदूषण के कारण आसपास की खेती योग्य भूमि बंजर हो रही है और जहरीले वातावरण के कारण गांव के हर दूसरे नागरिक को अस्थमा, दमा और सांस संबंधी गंभीर बीमारियां हो रही हैं।

यह मामला सिर्फ बंधुआ मजदूरी का नहीं, बल्कि मानव तस्करी, बाल श्रम, जानलेवा हमला और पर्यावरण को नष्ट कर आम लोगों की जान से खिलवाड़ करने का भी है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर कंपनी संचालकों पर कब कार्रवाई होगी और क्या इस मामले में शामिल असली बड़े चेहरों को बेनकाब किया जाएगा?

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