नारायणपुर। जनजातीय संस्कृति और बस्तर की समृद्धविरासत को राष्ट्रीय मंच पर गौरवान्वित करते हुए छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के गढ़बेंगाल गांव निवासी, पंडीराम मुरिया जनजाति के प्रख्यात शिल्पकार और संगीतज्ञश्डी राम मंडावी को पद्मश्री सम्मान से अलंकृत किया गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा उन्हें यह प्रतिष्ठित सम्मान कला के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रदान किया गया।
आदिवासी संस्कृति का जीवंत स्वरूप
पंडीराम मंडावी ने बस्तर की मिट्टी में जन्म लेकर अपनी पारंपरिक कला को नई ऊँचाइयाँ दी हैं। लकड़ी पर बारीक नक्काशी और पारंपरिक बांसुरी निर्माण में दक्ष मंडावी ने जनजातीय संस्कृति की आत्मा को न केवल सहेजा बल्कि उसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुँचाया। उनकी कलाकृतियाँ न केवल भारत, बल्कि अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी प्रदर्शित हो चुकी हैं।
“सुलुर” और “बस्तर फ्लूट”: बस्तर की सांस्कृतिक आवाज़
मंडावी द्वारा निर्मित बांसुरी, जिसे वे “सुलुर” कहते हैं, जनजातीय संगीत का जीवंत प्रतीक बन चुकी है। उनकी धुनों में बस्तर की घाटियों, नदियों और पर्वतों की गूँज सुनाई देती है। उन्होंने न केवल इस पारंपरिक वाद्ययंत्र को सहेजा, बल्कि इसे आधुनिक मंचों पर प्रस्तुत कर दुनिया को इसकी मधुरता से परिचित कराया।
पाँच दशकों की साधना का सम्मान
पिछले पाँच दशकों में श्री मंडावी ने बांसुरी निर्माण, लकड़ी की नक्काशी और जनजातीय वाद्ययंत्रों की कला को नई दिशा दी। उनके जीवन का अधिकांश भाग गोंड मुरिया जनजाति की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने और नई पीढ़ी को इससे जोड़ने में समर्पित रहा। उनका यह सम्मान उन सभी कलाकारों के लिए प्रेरणा है जो अपनी जड़ों से जुड़े रहकर अपनी संस्कृति को संजो रहे हैं।
मुख्यमंत्री और जनप्रतिनिधियों की शुभकामनाएं
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री, आदिवासी नेताओं और सांस्कृतिक संस्थानों ने मंडावी को पद्मश्री सम्मान के लिए बधाई दी है। मुख्यमंत्री ने कहा, “यह सम्मान केवल एक कलाकार का नहीं, बल्कि पूरी छत्तीसगढ़ी जनजातीय विरासत का सम्मान है। मंडावी जी की साधना और समर्पण ने हमारी सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक स्तर पर नई पहचान दिलाई है।”
प्रेरणा की मिसाल
पंडीराम मंडावी का जीवन और उनकी साधना छत्तीसगढ़ और देश भर के युवाओं को अपनी सांस्कृतिक जड़ों की ओर लौटने की प्रेरणा देता है। उनके द्वारा सहेजे गए वाद्ययंत्र और शिल्पकला अब आने वाली पीढ़ियों के लिए एक जीवंत संग्रहालय बन चुके हैं। पंडीराम मंडावी का जीवन और उनकी साधना छत्तीसगढ़ और देश भर के युवाओं को अपनी सांस्कृतिक जड़ों की ओर लौटने की प्रेरणा देता है। उनके द्वारा सहेजे गए वाद्ययंत्र और शिल्पकला अब आने वाली पीढ़ियों के लिए एक जीवंत संग्रहालय बन चुके हैं।
