गरियाबंद: ओडिशा से सटे छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती इलाकों में इन दिनों तेंदूपत्ता तस्करी का गोरखधंधा जोरों पर है। इस “हरे सोने” की तस्करी कर बिचौलिए इसे स्थानीय लघु वनोपज समितियों में खपा रहे हैं। कच्ची सड़कों और दोपहिया वाहनों के माध्यम से तेंदूपत्ता ओडिशा से लाया जा रहा है, जिसे स्थानीय संग्राहकों के माध्यम से आसानी से खरीदी केंद्रों तक पहुंचाया जा रहा है। यह अवैध कारोबार वर्षों से बेधड़क चल रहा है।
राजनीतिक दबाव में दब गई कार्रवाई
जब मीडिया द्वारा झाखर पारा समिति के सीमावर्ती केंद्रों में तस्करी की सूचना वन विभाग को दी गई, तो अफसर मौके पर पहुंचे और कार्रवाई की औपचारिकता भी निभाई गई। मगर अंततः राजनीतिक दबाव के चलते कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। हालांकि, संबंधित रेंजर का दावा है कि भविष्य में इस तस्करी को रोकने के लिए सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सरकार को हो रहा आर्थिक नुकसान
ओडिशा से आ रहे तेंदूपत्तों की गुणवत्ता निम्न स्तर की होने के कारण राज्य सरकार को भारी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ रहा है। संग्राहकों को प्रति मानक बोरा ₹5500 का भुगतान किया जाता है, लेकिन ठेका कंपनियां इस पत्ते की गुणवत्ता को देखते हुए ₹5000 तक भी नहीं दे रही हैं। इससे सरकारी राजस्व में सीधा नुकसान हो रहा है।
ठेका कंपनी घटा रही पत्तों की कीमत
देवभोग रेंज की सात समितियां, जो ओडिशा सीमा से लगती हैं, वहां तेंदूपत्तों की कीमत ठेका कंपनियों द्वारा जानबूझकर कम आँकी जा रही है। जिले की कुल 62 समितियों में इन 7 समितियों की स्थिति सबसे अधिक प्रभावित है, जिससे छत्तीसगढ़ शासन को लगातार राजस्व हानि हो रही है।
