धरमजयगढ़ कन्या आश्रम: छात्राओं की मांगें नहीं सुनी जा रहीं, क्या होगा समाधान?

प्रादेशिक मुख्य समाचार

धरमजयगढ़ :- विकासखंड धरमजयगढ में शिक्षा के लिए बने भवनों का हाल बेहाल हो गया है। जहां भी देखें स्कूल भवन से लेकर छात्रावास आश्रमों का स्थिति बद् से बद्दतर में है। इसी क्रम में आज हम बताने जा रहे हैं विकासखंड के ही सुदूरवर्ती गांव कुमरता में बने आदीवासी बालक आश्रम का जिसका स्थिति बद् से बद्दतर हालात में है। बता दें आश्रम में कुल के 25 बालक रहते हैं। लेकिन वहीं आश्रम का दृश्य देखकर और बालकों की व्यथा सुनकर शायद आपके आंखों में आंसू आ जायेंगे।
बता दें आश्रम का छत बारिश से जगह-जगह पर टपक रही है । और छत के टपकने की वजह से रुम में पानी भर जाता है। बालकों को सोने के लिए मुश्किल उठानी पड़ती है। और आश्रम के अंदर किसी खंडहरों कम नहीं लग रहा। आश्रम में लगातार बारिश से छत टपकना फिर बालकों का आवाजाही कीचड़ आश्रम के अंदर घुस रही है। वहीं आश्रम के अंदर ही कुडा़दान पेटी रखा गया है। आश्रम के अंदर बदबू आ रही है। साफ सफाई का भी अभाव है।

जिससे आने वाले समय में कई तरह के बीमारी बैक्टीरिया,खुजली,उल्टी दस्त जैसे कई बिमारी होने की संभावना स्पष्ट रूप से झलक रही है। संबंध में हमने आश्रम में रहने वाले बच्चों से जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि आश्रम में रहने का मन नहीं लगता है लेकिन शिक्षा के लिए मजबुर हैं, इसीलिए रहने को मजबूर हैं। और रात में बरसात और छत का टपकना को बच्चों ने जब बताया तो आंखें नम हो गई। उन्होंने कहा सर, जब रात में सोते समय जब पानी गिरता है तो हम सो नहीं पाते पानी के टपकने से हमारी सारे बेड गद्दे गीला हो जाता है। कभी बेड को इधर खसकाते तो कभी ऊधर खींचते हैं। लेकिन हर जगह टपकता है तो फिर किधर करेंगे। आगे उन्होंने बताया कि रात को एक कोने में खड़े होकर रात गुजार लेते हैं। और बदबू से भी परेशान हैं। वे जितना बन पड़े खुद साफ सफाई करते हैं। बालकों द्वारा बताए गए दुःख भरी व्यथा और वहीं जिम्मेदार अधिकारी जनप्रतिनिधि वाह रे जिम्मेदार प्रशासन। एक तरफ सरकार स्वच्छ जल जीवन मिशन, स्वच्छ भारत,बेहतर शिक्षा,स्वास्थ्य भारत, निरोग भारत,का नारे घर घर लगा रही।

और वहीं आदिवासियों को लेकर सजगता बरत रही है। लेकिन धरातल पर कुछ भी नहीं है। सबसे बड़ा सवाल अधीक्षक क्रीतराम नागवंशी पर है –जो प्राथमिक शाला कदमढो़ढी़ में शिक्षक भी हैं, जिन्हें बच्चों की देखरेख करनी चाहिए, वे स्वयं विद्यालय पढ़ाने चले जाते हैं। जो उक्त समय पढ़ाने के लिए प्राथमिक शाला कदमढो़ढी़ निकल गये थे। लेकिन हमने उनको फोन पर संपर्क करा लेकिन उन्होंने काल रिसीव नहीं किये। यह केवल गैरजिम्मेदारी नहीं, बल्कि अपराध है उन मासूमों के खिलाफ जिनकी जिंदगी उनके भरोसे है। लेकिन वहीं बड़ा सवाल आश्रम की ऐसी हालात की जिम्मेदारी आखिर कौन है? क्या आश्रम के साफ सफाई में अधिक्षक में ध्यान देना या जिम्मेदारी नहीं है? कुमरता आश्रम की यह तस्वीर केवल एक गाँव की नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की पोल खोलती है।
यह उस आईने जैसा है, जिसमें सरकार की चमचमाती घोषणाएँ और धरातल की सड़ांध भरी सच्चाई आमने-सामने खड़ी हैं। और बीच में खड़े हैं मासूम बालक – जिनकी किताबें भीग रही हैं, सपने भीग रहे हैं और भविष्य जिम्मेदारों की बेरुखी की नालियों में बह रहा है।

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