आठवीं से दसवीं तक सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या में आई गिरावट: चार हजार बच्चों की कमी

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रायगढ़। सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने के लिए युक्तियुक्तकरण के साथ कई जतन किए जा रहे हैं। फिर भी हालात चिंताजनक हैं। स्कूलों में ड्रॉपआउट के अलावा कई कारण हैं जिनकी वजह से संख्या कम होती जाती है। खासकर 9 वीं के बाद तो ही साल 3-5 हजार बच्चे कम होते जाते हैं। स्कूली शिक्षा को कल्याणकारी चोंगे से निकालकर करियर ओरिएंटेड बनाना ज्यादा जरूरी है। अभी सरकार ने सरकारी स्कूलों को गरीब बच्चों के लिए नि:शुल्क शिक्षा देने का केंद्र बना रखा है। यहां उनके लिए मध्याह्न भोजन है, मुफ्त किताबें हैं, मुफ्त गणवेश है, फ्री खेल सामग्री है, उसके बाद छात्रवृत्ति भी है।

इतनी सारी योजनाओं और सौगातों के बाद भी क्या वजह है कि सरकारी स्कूलों से बच्चों का मोहभंग होता जा रहा है। मौजूदा दौर के लिहाज से छग की स्कूली शिक्षा आउटडेटेड है। दूसरी ओर प्राइवेट स्कूल हैं जहां सख्ती है, अनुशासन है, मुफ्त योजनाएं नहीं हैं, लेकिन बच्चे अच्छी शिक्षा ग्रहण कर आगे के लिए सफलता की राह बना रहे हैं। प्राथमिक और माध्यमिक स्तर तक तो सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या में गिरावट बहुत कम है लेकिन जैसे ही 9 वीं तक पहुंचते हैं, यह आंकड़ा हजारों में पहुंच जाता है। वर्ष 22-23, 23-24 और 24-25 की तुलना करने पर यह साफ नजर आता है।

वर्ष 22-23 में सरकारी स्कूलों में 8 वीं में 14081 विद्यार्थी थे जो 23-24 में 9 वीं 12822 रह गए। 24-25 में कक्षा 10 वीं में 9921 रह गए। मतलब तीन ही साल में करीब 4100 विद्यार्थी कम हो गए, जबकि आजकल ज्यादा विद्यार्थी फेल नहीं किए जाते। इसी तरह 22-23 में 9 वीं में 13233 स्टूडेंट्स थे जो 23-24 में दसवीं में पहुंचकर 10809 रह गए। इनमें से वर्ष 24-25 में 12 वीं में 8045 ही बचे रहे। मतलब इन तीन कक्षाओं में 5 हजार से अधिक बच्चे गायब हो गए।

12 वीं तक होती है ज्यादा गिरावट
अब अंतिम तीन कक्षाओं की तुलना करें तो आंकड़ा उसी तरह का मिलता है। वर्ष 22-23 में 10 वीं में 11262 स्टूडेंट्स थे जो अगले साल 23-24 में 11 वीं में 8025 हो गए। वर्ष 24-25 में जिले में 12 वीं में 7533 स्टूडेंट बचे रहे। इस बार भी गिरावट करीब 4000 रही। यह आंकड़े बता रहे हैं कि स्कूली शिक्षा पद्धति में कहीं कोई गलती हो रही है। जब सरकारी स्कूलों की समीक्षा की बात होती है तो चर्चा केवल मध्याह्न भोजन, गणवेश, पुस्तकों, भवन तक ही सीमित रह जाती है। अध्यापन का स्तर और ज्ञानवर्धन पर कोई चर्चा ही नहीं होती।

कैसे शिक्षक पढ़ा रहे हैैं बच्चों को?
सरकारी स्कूलों को लेकर सरकार की धारणा बहुत ही अजीबोगरीब है। कोई नेता, अफसर स्कूलों का निरीक्षण करते हैं तो सुविधाओं का जिक्र होता है। हर साल यह बताया जाता है कि इतने स्कूलों में भवन बना दिए गए, इतने शिक्षकों की नियुक्ति कर दी गई। सवाल यह है कि जो सिलेबस तय किया गया है, उसे पढ़ा सकने वाले शिक्षक कितने हैैं। प्रायमरी स्तर से ही बच्चों का बेस तैयार करने के बजाय केवल औपचारिकता पूरी की जाती है। 6 वीं के बाद तो गंभीर अध्यापन होना चाहिए। यह भी सवाल है कि जो शिक्षक बीएड और टेट के जरिए पदस्थ किए जा रहे हैं, वे कितने योग्य हैं।

यहां देखिए आंकड़े

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