स्वास्थ्य विभाग में 35 करोड़ का घोटाला CMHO की बगावत, कलेक्टर के आदेश को ठुकराया

प्रादेशिक मुख्य समाचार

बिलासपुर/छत्तीसगढ़ में एक ओर जहां देशभर में “भ्रष्टाचार मुक्त भारत” की मुहिम को प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री ताकत के साथ आगे बढ़ा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बिलासपुर जिले में स्वास्थ्य विभाग के शीर्ष अफसर इस मुहिम को न केवल ठेंगा दिखा रहे हैं, बल्कि खुलेआम कलेक्टर के आदेश की अवहेलना भी कर रहे हैं। मामला करोड़ों की अनियमितता से जुड़ा है, और इसकी गंभीरता को नजरअंदाज करना अब प्रशासनिक नैतिकता और जवाबदेही दोनों पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।

35 करोड़ की घोटालेबाज़ी, पर जांच ठप्प!

जानकारी के अनुसार, वर्ष 2021 से 2024 के बीच बिलासपुर जिले के स्वास्थ्य विभाग में डीएमएफ फंड, मुख्यमंत्री राहत कोष, कोविड-19 टीकाकरण प्रोत्साहन राशि, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की अनुदान राशि, JDS (जिला स्वास्थ्य समिति) को दिए गए फंड और दानदाताओं द्वारा दिए गए अनुदानों में भारी गड़बड़ी की गई। इन अनियमितताओं की कुल अनुमानित राशि लगभग 30 से 35 करोड़ रुपए बताई जा रही है, जो वास्तविक जांच के बाद और भी अधिक हो सकती है।

इन फंडों का दुरुपयोग करने के पीछे तत्कालीन मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों, खंड चिकित्सा अधिकारियों एवं जिला कार्यालय के कुछ प्रभावशाली अधिकारियों की मिलीभगत सामने आई है। इन लोगों ने ना केवल सरकारी राशि के दुरुपयोग को अंजाम दिया, बल्कि दस्तावेजी प्रक्रियाओं और नियमों की पूरी तरह धज्जियाँ उड़ा दीं।

शिकायत हुई, कलेक्टर ने दिए जांच के निर्देश

छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य कर्मचारी संघ के कार्यकारी प्रांताध्यक्ष रविंद्र तिवारी ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए बिलासपुर कलेक्टर को विधिवत शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में विभाग के भीतर फैले भ्रष्टाचार के दस्तावेजी प्रमाण भी संलग्न किए गए थे। शिकायत को गंभीरता से लेते हुए दिनांक 7 जुलाई 2025 को कलेक्टर कार्यालय ने बिलासपुर CMHO को स्पष्ट निर्देश जारी करते हुए 7 दिवस के भीतर जांच कर प्रतिवेदन प्रस्तुत करने को कहा था।

CMHO ने किया आदेश को दरकिनार!

चौंकाने वाली बात यह है कि वर्तमान मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने कलेक्टर के आदेश की न केवल अनदेखी की, बल्कि जांच समिति गठन करना भी जरूरी नहीं समझा। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने पूर्ववर्ती अधिकारियों एवं सहयोगियों को संरक्षण देने की दिशा में कदम उठाते हुए आदेशित पत्र को संज्ञान में लेना तक उचित नहीं समझा।

यह स्पष्ट रूप से प्रशासनिक आदेश की अवमानना है, और इससे यह संकेत मिलता है कि भ्रष्टाचार की जड़ें अब भी विभाग के भीतर गहराई तक फैली हुई हैं।

स्वास्थ्य कर्मचारी संघ का तीखा रुख!

इस लापरवाही और आदेश की अवहेलना को देखते हुए छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य कर्मचारी संघ ने पुनः कलेक्टर से मिलकर ज्ञापन सौंपा और स्वतंत्र एवं उच्च स्तरीय जांच समिति गठित करने की मांग की। संघ का कहना है कि जब तक जांच निष्पक्ष, पारदर्शी और स्वतंत्र एजेंसी से नहीं कराई जाएगी, तब तक दोषियों को संरक्षण मिलता रहेगा और भ्रष्टाचारियों के हौसले बुलंद होते रहेंगे।

संघ के कार्यकारी प्रांताध्यक्ष रविंद्र तिवारी ने कहा,

“यह मामला केवल आर्थिक घोटाले का नहीं है, बल्कि यह शासन की छवि को धूमिल करने वाला मामला है। जब कलेक्टर के आदेश की खुलेआम अवहेलना की जाती है, तो यह लोकतांत्रिक और प्रशासनिक व्यवस्था को चुनौती देने जैसा है। हमारी मांग है कि जांच का कार्य कलेक्टर कार्यालय से ही उच्च स्तरीय समिति द्वारा कराया जाए, ताकि सच सामने आ सके और दोषियों पर उचित कार्रवाई हो।”

प्रशासन की चुप्पी, सवालों के घेरे में!

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब कलेक्टर द्वारा स्पष्ट निर्देश जारी किया गया था, तो उसका पालन क्यों नहीं किया गया? क्या स्वास्थ्य विभाग के भीतर बैठे अधिकारी अब प्रशासन से ऊपर हो गए हैं? क्या भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों को राजनीतिक या आंतरिक संरक्षण प्राप्त है?

क्या होगी कार्रवाई? या फिर मामला दबा दिया जाएगा?

बिलासपुर का यह मामला एक टेस्ट केस बन सकता है। यदि इस पर त्वरित, निष्पक्ष एवं कड़ी कार्रवाई नहीं होती, तो यह राज्य के अन्य जिलों में बैठे भ्रष्ट अधिकारियों के लिए भी एक खुली छूट बन जाएगी। राज्य सरकार की “भ्रष्टाचार मुक्त शासन” की नीति पर भी सवाल उठने लगेंगे।

अब देखना यह है कि कलेक्टर कार्यालय, स्वास्थ्य मंत्रालय और शासन इस गूंजते हुए सवाल का उत्तर किस रूप में देते हैं — सत्य की जांच और दोषियों की गिरफ्तारी, या फिर फाइलों की धूल और मामला ठंडे बस्ते में!

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