130वां संविधान संशोधन विधेयकः राजनीतिक जवाबदेही या लोकतंत्र पर संकट ?

प्रादेशिक मुख्य समाचार

रत्ना श्रीवास्तव रिसर्च स्कॉलर,

रायपुर, भारतीय लोकतंत्र अपनी जड़ों में जवाबदेही, पारदर्शिता और नैतिक राजनीति के सिद्धांतों पर आधारित है। संविधान निर्माताओं ने कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपात्रिका के बीच संतुलन स्थापित करते हुए यह सुनिश्चित करने की कोशिश की थी कि शासन जनता की अकांक्षाओं के अनुरूप चती। लेकिन समय-समय पर राजनीति में अपराधीकरण और सत्ता का दुरुपयोग भारतीय लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौती जनता रहा है। इत्ती पृष्ठभूमि में हाल में पेश किया गया 130वां संविधान संशोधन विधेयक 2025 चर्चा और विवाद का केंद्र बना हुआ है।
विधेयक का परिचय-
20 अगस्त 2025 को केंद्रीय गृष्ठमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में संविधान (130वां संशोधन) विधेयक पेश किया। इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, केंद्रीय या राज्य मंत्रियों को उनके पद से हटाना है. यदि ये किसी गंभीर आपराधिक मामले (जहाँ सजा पाँच वर्ष या उससे अधिक हो सकती है) में गिरपतार होकर लगातार 30 दिनों तक न्यायिक हिरासत में रहते हैं। वर्तमान में संविधान प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को केवल राष्ट्रपति/राज्यपाल के विश्वास खोने या पतत्याग करने की स्थिति में पट से हटाता है, लेकिन यह संशोधन गिरपतारी और हिरासत को ही पद खोने का आधार बना देता है।
इस विधेयक में जो मुख्य बातें रखी गई वो इस प्रकार है यदि कोई मंत्री गंभीर अपराध में 30 दिनों तक जेल में है तो वह स्वतः ही अपने पद से वंचित हो जाएगा। दूसरा यह कि दोष सावित होने से पहले ही केवल गिरपत्तारी और न्यायिक हिरासत के आधार पर पट छिन सकता है। तीसरा यह कि रिहाई के बात वही व्यक्ति दोवारा उसी पद पर नियुक्त हो सकता है। इस विधेयक के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 75 (प्रधानमंत्री या केंद्रीय मंत्री), अनुच्छेद 164 (मुख्यमंत्री या राज्य मंत्री) तथा अनुच्छेट 239 कक (दिल्ली सरकार), इन अनुच्छेदों में परिवर्तन का प्रस्ताव रखा गया है।
विधेयक के समर्थन में तर्क कुछ विचारकों का कहना है कि भारत में कई ऐसे जनप्रतिनिधि सत्ता में रहते हैं जिन पर गंभीर अपराधिक मामले दर्ज हैं। यह संशोधन उन्हें तुरंत जवाबदेह बनाने का साधन हो सकता है। इसके अतिरिक्त जनता का भरोसा उस तथ्य से मजबूत हो सकता है कि जिन नेताओं पर गंभीर आरोप हैं, ये शासन नहीं चला पाएंगे। दूसरी ओर यदि तंत्री जेल में रहते हुए भी सत्ता का प्रयोग करते हैं, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करता है। यह संशोधन ऐसी स्थिति को रोकने में भी सहायक हो सकता है।
हालांकि यह विधेयक भ्रष्टाचार और अपराध से राजनीति को मुक्त करने का दावा करता है, लेकिन इसके विरूद्ध कुछ गंभीर सवाता भी उठ रहे हैं। इस विधेयक से ‘दोषी सिद्धि तक निर्दोष’ सिद्धांत का उल्लंघन होगा, भारतीय दंड प्रक्रिया का मूल आधार है कि जब तक दोष सिद्ध न हो, तब तक कोई व्यक्ति निर्दोष माना जाएगा। मात्र गिरफ्तारी पर पद छिनना न्यायिक प्रक्रिया का अपमान माना जा रहा है। इस विधेयक को देश के संघीय ढांचे पर आघात माना जा रहा है. राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को हटाने का अधिकार अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र सरकार को मिल सकता है. जिससे संघीय ढांचे की स्वायत्तता प्रभावित होगी। पश्चिम बंगाल तथा तमिलनाडु के मुख्यमंत्री जैसे नेताओं ने इसे तानाशाही की ओर बढ़ता कदम और लोकतंत्र पर हमला बताया है। यदि कोई नोकप्रिय मुख्यमंत्री मान गिरपतारी के आधार पर हटता है, तो यह जनता के जनादेश का उत्हांघन होगा। ऐसी स्थिति राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दे सकती है।
इसके अलावा विधेयक के कुछ संभावित प्रभाव भी हो सकते हैं, जैसे- विपक्षी शासित राज्यों में यह विधेयक बार-बार इस्तेमाठा हो सकता है, जिससे राज्य सरकारें अस्थिर होंगी। इसके अतिरिक्त न्यायपात्रिका की भूमिका बढ़ेगी, इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती ही जा सकती है, क्योंकि यह मौलिक अधिकारों और न्यायिक सिद्धांतों से टकराता है। एक ओर जनता उसे राजनीतिक स्वच्छता का प्रयास मान सकती है. दूसरी ओर इसे लोकतंत्र और विपक्ष को कमजोर करने का औजार भी समझ सकती है। इस विधेयक के लागू होने से केंद्र और राज्यों के बीच टकराव बढ़ सकता है, जिसत्ते संघीय ढांचे में तनाव उत्पन्न होगा।
130वां संविधान संशोधन विधेयक 2025 भारतीय लोकतंत्र में जवाबदेही और नैतिक राजनीति को मजबूत करने के उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया है। लेकिन इसका स्वरूप ऐसा है जो संवैधानिक सिद्धांतों, संघीय ढांचे और लोकतांत्रिक संतुलन के लिए गंभीर प्रश्न खड़े करता है। केवल गिरफ्तारी के आधार पर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को पत्र से हटाना निश्चित रूप से न्यायिक प्रक्रिया की आत्मा के खिलाफ माना जा सकता है।
अतः यह आवश्यक है कि इस विधेयक पर गहन विचार-विमर्श हो, उसमें संतुलनकारी प्रावधान जोड़े जाएँ और इसे राजनीतिक हथियार की बजाय वास्तविक जयावदेही का साधन बनाया जाए। तभी यह संशोधन भारतीय लोकतंत्र को सम्हावत करने की दिशा में सार्थक सिद्ध हो सकेगा, अन्यथा यह लोकतांत्रिक संस्थाओं पर गहरा आघात बन सकता है।

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