जीवन में सिर्फ रुपया ही धन नहीं है। शरीर में जीवनी शक्ति, मस्तिष्क में प्रज्ञा शक्ति सहित अन्य रूपों में धन का एक विशाल स्वरूप है और हमारा इन सबके प्रति कृतज्ञता का भाव ही धनतेरस है।
धनतेरस पर विशेष
दिवाली का उत्सव धनतेरस से शुरू होता है। और धन क्या है? हमारे वेदों में, श्रीसूक्त में बोला गया है— ‘धनं अग्नि धनं वायु धनं सूर्यो धनं वसु।’
धनं अग्नि—अग्नि धन है। आपके भीतर जो तेज है, वो अग्नि है। जो अग्नि आपके भीतर एक उत्साह के रूप में विद्यमान है, जिसके कारण आप आगे बढ़ते हैं, वही धन है। तो ‘धनं वायु’— जो प्राण वायु जीवन का आधार है, वह भी धन है। ‘धनं सूर्यो धनं वसु’— सूर्य भी धन है। आज देखिए, हम लोग सूर्य को क्लीन एनर्जी, सोलर पॉवर एनर्जी कहते हैं। हमें सूरज से सब कुछ प्राप्त है।
पिछले कुछ वर्षों में सूर्य की ऊर्जा को हमने विद्युत तरंग में बदलना सीख लिया है। तो विद्युत भी धन है। आप देखिए एक दिन करंट नहीं है तो घर में न रेफ्रिजरेटर चलेगा, न फोन और न ही कोई अन्य उपकरण। तो जीवन चलाने के लिए हमें विद्युत चाहिए और विद्युत सूर्य से मिलती है; तो सूर्य धन हुए कि नहीं?
इसी प्रकार यदि शरीर में जीवन नहीं है, प्राण नहीं है तो यह मात्र एक शव रह जाएगा! तो इस जीवनी शक्ति को वसु कहते हैं। जीवनी शक्ति भी धन है। सिर्फ रुपया-पैसा, सोने-चांदी के सिक्के को धन मानना मूर्खता है। जीवन में धन्यभागी अनुभव करना ही सबसे बड़ा धन है। जिनमें कृतज्ञता का अभाव होता है, वे धनी नहीं हैं।
‘धनं इंद्रो बृहस्पतिर्वरुणो धनमश्विना’। बृहस्पति धन है। जब इस तरह से धन को एक बड़ा विशाल स्वरूप दे दिया, तब हमारे जीवन में छोटी-छोटी चीजों के लिए लालच कहां बना रहेगा? तो धनतेरस का यही संदेश है— आपको अपने जीवन में जो भी मिला है, उन सबको याद करें। उन सबके लिए कृतज्ञता व्यक्त करें। यही धनतेरस का लक्ष्य है।
धनतेरस के उपलक्ष्य में क्या करते हैं? अपने घर में जो भी चीजें रखी हुई हैं, वो सब सामने रख कर, जब ये अनुभव करते हैं कि हमारे पास तो सब कुछ भरपूर है। यह याद आते ही अभाव मिट जाता है। लोभ मिट जाता है। जब तक जीवन में लोभ और अभाव न मिटे, तब तक दरिद्रता बनी ही रहती है। जब लोभ और अभाव मिट जाए, तृप्ति झलकने लगे, तो समझिए दिया जल गया, अंधेरा मिट गया है। इसीलिए यह अंधेरा मिटाने के लिए हमें ज्ञान का दिया जलाना चाहिए।
धनतेरस से संबंधित एक और कथा प्रचलित है, जिसमें बताया जाता है कि समुंद्र मंथन के बाद भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए और संसार को आयुर्वेद का ज्ञान दिया। तो धनतेरस के दिन आयुर्वेद की भी जयंती मनाई जाती है।
