चूल्हे की जरूरत नहीं, फिर भी स्वादिष्ट भोजन मिलता है… भारत का ये गांव है बेहद अनोखा!

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भारत के गांव सदियों से अपनी सरल जीवनशैली, परंपराओं और आत्मीयता के लिए पहचाने जाते हैं। कभी मिट्टी के घर, मिट्टी के चूल्हे और कुओं का मीठा पानी ग्रामीण जीवन की पहचान हुआ करते थे। समय बदला, गांवों में बिजली आई, सुविधाएं बढ़ीं, लेकिन लोक परंपराओं की वह गर्माहट आज भी कई गांवों में जिंदा है। इन्हीं परंपराओं के बीच एक गांव ऐसा भी है, जिसने अपनी अनोखी जीवनशैली की वजह से देशभर का ध्यान खींच लिया है एक ऐसा गांव जहां किसी भी घर में चूल्हा नहीं जलता, फिर भी कोई भूखा नहीं रहता। आइए जानते हैं इसके बारे में।

गुजरात का चांदणकी गांव

गुजरात के चांदणकी गांव की यह अनोखी परंपरा सुनकर किसी को भी हैरानी हो सकती है। आमतौर पर हर घर में रसोई होती है, जहां परिवार का भोजन तैयार होता है, लेकिन चांदणकी में ऐसा नहीं है। लगभग हजार की आबादी वाला यह गांव सामूहिक रसोई की अनोखी परंपरा निभाता है, जहां रोज़ाना पूरे गांव का भोजन एक ही स्थान पर पकाया जाता है और सभी ग्रामीण वहीं बैठकर साथ में भोजन करते हैं। यह परंपरा सिर्फ खाने का तरीका नहीं, बल्कि गांव की गहरी एकता और सामाजिक सौहार्द की मिसाल है।

कैसे शुरू हुई यह परंपरा?

गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि वर्षों पहले जब यहां के कई युवा बड़े शहरों और विदेशों में रहने लगे, तब गांव में बुजुर्गों की संख्या बढ़ने लगी। उन्हें रोज़ाना अलग-अलग घरों में खाना बनाना मुश्किल होने लगा। इसी समस्या के समाधान के रूप में गांव वालों ने एक साथ खाना बनाने और खाने की सामूहिक परंपरा की शुरुआत की, जो समय के साथ गांव की पहचान बन गई।

आज भी लगभग 100 ग्रामीण रोज़ाना मिलकर खाना बनाते हैं, ताकि किसी एक व्यक्ति पर भार न पड़े। दाल, सब्जी, रोटी ये सब मिलकर बनाया जाता है, और विशेष अवसरों पर अलग-अलग व्यंजन भी तैयार किए जाते हैं।

पर्यटकों के लिए भी खुला गांव का भोजनघर

यह अनोखी परंपरा अब देशभर के लोगों को आकर्षित कर रही है। यहां आने वाले पर्यटकों का गांव वाले दिल खोलकर स्वागत करते हैं और उन्हें भी उसी सामूहिक रसोई में बना भोजन परोसा जाता है। भोजन के साथ-साथ उन्हें गांव की संस्कृति, एकजुटता और परंपराओं का अनुभव भी मिलता है, जो चांदणकी को एक उभरता हुआ टूरिस्ट स्पॉट बना रहा है।

एकता से बने खुशहाल जीवन का मॉडल

चांदणकी के लोग कहते हैं कि उनके गांव में कोई अकेला नहीं है। हर किसी के सुख-दुख में साथ खड़े होने की परंपरा ने पूरे गांव को परिवार बना दिया है। यहां रहने वाले लोग हंसी-मजाक से भरा, सरल और सामुदायिक जीवन जीते हैं। इस सामूहिक भोजन परंपरा ने न सिर्फ बुजुर्गों का जीवन आसान किया है, बल्कि गांव में समानता, सहयोग और खुशी का वातावरण भी पैदा किया है। चांदणकी यह संदेश देता है कि गांव सिर्फ रहने की जगह नहीं, बल्कि साथ मिलकर जीने की कला का नाम है।

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