जेन-ज़ेड आंदोलनकारियों ने अब ऐलान कर दिया है कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की नेपाल की अंतरिम प्रधानमंत्री बनेंगी और छह महीने के भीतर देश में नए चुनाव कराए जाएंगे। 73 वर्षीय कार्की को ईमानदार, निर्भीक और अडिग नेतृत्व का प्रतीक माना जाता है।
नेपाल इन दिनों इतिहास के सबसे हिंसक और व्यापक सामाजिक-राजनीतिक संकट से गुजर रहा है। राजधानी काठमांडू में युवा आंदोलनकारियों, जिन्हें ‘जेन-ज़ेड’ कहा जाता है, उन्होंने व्यापक विरोध प्रदर्शनों के जरिए प्रधानमंत्री को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया। इन प्रदर्शनों में अब तक 30 से अधिक लोगों की जान गई, 1,033 से अधिक लोग घायल हुए और 15,000 से ज्यादा कैदी जेलों से फरार हो गए। हिंसा ने केवल राजनीतिक ढांचे को नहीं हिलाया, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी गहरे घाव दिए हैं।
जेन-ज़ेड आंदोलनकारियों ने अब ऐलान कर दिया है कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की नेपाल की अंतरिम प्रधानमंत्री बनेंगी और छह महीने के भीतर देश में नए चुनाव कराए जाएंगे। 73 वर्षीय कार्की को ईमानदार, निर्भीक और अडिग नेतृत्व का प्रतीक माना जाता है। उनके नेतृत्व में यह अस्थायी सरकार नेपाल को स्थिरता की राह पर ले जाने की कोशिश करेगी, लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं होंगी।
इसके अलावा, हाल ही में हुए विरोध प्रदर्शनों में सरकारी इमारतों, होटलों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में आगजनी और तोड़फोड़ ने नेपाल की अर्थव्यवस्था को भयंकर नुकसान पहुंचाया है। पर्यटन पर निर्भर देश में पोखरा और काठमांडू के प्रमुख होटलों में आग लगी। स्कूल-कॉलेज बंद, दुकानों और बाजारों में हाहाकार और हजारों लोग रोजगार से वंचित हो गए। यह स्पष्ट है कि जेन-ज़ेड आंदोलन ने, भ्रष्टाचार और असफल राजनीतिक व्यवस्थाओं के खिलाफ आवाज उठाई, मगर उन्होंने अपने उग्र प्रदर्शन से बची-खुची अर्थव्यवस्था को भी तहस-नहस कर दिया। विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाल की जीडीपी को इस अशांति से कई अरब डॉलर का नुकसान हुआ है। पर्यटन, जो नेपाल की आय का प्रमुख स्रोत है, वह लंबी अवधि तक उबर नहीं पाएगा।
नई सरकार के समक्ष चुनौतियों का जिक्र करें तो आपको बता दें कि सुशीला कार्की की अंतरिम सरकार के सामने कई गहरी चुनौतियाँ हैं। कैदियों की बड़ी संख्या में जेल से फरार होना और हिंसक प्रदर्शन दर्शाते हैं कि देश में सुरक्षा व्यवस्था चरमरा गई है। इसके अलावा, पर्यटन, व्यापार और निवेश को बहाल करना और देश की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही विभिन्न राजनीतिक दलों और युवाओं के बीच संतुलन बनाए रखना होगा। इसके अलावा, छह महीने में चुनाव करा कर सुनिश्चित करना होगा कि जनता की आवाज़ सही मायने में संसद तक पहुंचे।
देखा जाये तो नेपाल की हालिया घटनाएँ यह दिखाती हैं कि भ्रष्टाचार और प्रशासनिक विफलताओं के खिलाफ युवा वर्ग खड़ा हो सकता है, लेकिन हिंसा और अराजकता सिर्फ देश को नुकसान पहुँचाती हैं। सुशीला कार्की उम्मीद की किरण जरूर है, लेकिन उनके लिए मार्ग आसान नहीं होगा। अब देश की स्थिरता और विकास इस बात पर निर्भर करेगा कि आंदोलनकारी, सेना और राजनीतिक दल मिलकर संवैधानिक और शांतिपूर्ण रास्ता अपनाते हैं या नहीं। इसमें कोई दो राय नहीं कि नेपाल आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ जनता की आकांक्षाएँ और वास्तविक चुनौतियाँ दोनों सामने हैं। कार्की का नेतृत्व इसे सही दिशा देने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है, बशर्ते सभी हितधारक संयम और दूरदर्शिता दिखाएँ।
