बीजिंग/नयी दिल्ली. विदेश मंत्री डा. एस जयशंकर ने कहा है कि भारत और चीन के संबंध धीरे-धीरे सकारात्मक दिशा में आगे बढ रहे हैं और अब जरूरी है कि दोनों देश संबंधों के प्रति दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाएं तथा सीमा से जुड़े मुद्दों पर भी ध्यान दें।
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में भाग लेने चीन गये डा. जयशंकर ने सोमवार को बीजिंग में चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ बैठक से पहले अपनी प्रारंभिक टिप्प्णी में कहा कि मतभेद विवाद नहीं बनने चाहिए और न ही प्रतिस्पर्धा कभी संघर्ष में बदलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस आधार पर अब हम अपने संबंधों को सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ा सकते हैं।
चीन को एससीओ की सफल अध्यक्षता की कामना करते हुए उन्होंने कहा कि भारत मंगलवार को होने वाली बैठक में सकारात्मक परिणाम और निर्णय सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।
द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने की दिशा में दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा , “ हमारे द्विपक्षीय संबंधों के लिए यह आवश्यक है कि हम अपने संबंधों के प्रति दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाएँ। अक्टूबर 2024 में कज़ान में हमारे नेताओं की बैठक के बाद से भारत-चीन संबंध धीरे-धीरे सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। हमारी ज़िम्मेदारी इस गति को बनाए रखना है।”
उन्होंने दोनों देशों के बीच नियमित संवाद पर बल देते हुए कहा कि यह दोनों देशों के हित में रहेगा। दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में प्रगति को अच्छा बताते हुए उन्होंने सीमा से संबंधित मुद्दों के समाधान पर भी ध्यान दिये जाने को कहा । उन्होंने कहा,“ हमने पिछले नौ महीनों में द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में अच्छी प्रगति की है। यह सीमा पर तनाव के समाधान और वहाँ शांति एवं सौहार्द बनाए रखने की हमारी क्षमता का परिणाम है। यह पारस्परिक रणनीतिक विश्वास और द्विपक्षीय संबंधों के सुचारू विकास का मूलभूत आधार है। अब यह हमारा दायित्व है कि हम सीमा से संबंधित अन्य पहलुओं, जिनमें तनाव कम करना भी शामिल है, पर ध्यान दें।”
विदेश मंत्री ने दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधी बाधाओं को दूर करने विस्तार से चर्चा की जरूरत पर भी बल दिया। उन्होंने कहा , “ हमारे लोगों के बीच आदान-प्रदान को सामान्य बनाने की दिशा में उठाए गए कदम निश्चित रूप से पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग को बढ़ावा दे सकते हैं। इस संदर्भ में यह भी आवश्यक है कि प्रतिबंधात्मक व्यापार उपायों और बाधाओं से बचा जाए। मुझे आशा है कि इन मुद्दों पर और विस्तार से चर्चा होगी।”
उन्होंने कहा कि संबंधों को सकारात्मक दिशा में आगे बढाने के लिए जरूरी है कि मतभेद विवाद न बनें और प्रतिस्पर्धा संघर्ष का रूप न ले। उन्होंने कहा ,“ भारत और चीन के बीच स्थिर तथा रचनात्मक संबंध न केवल हमारे, बल्कि विश्व के भी हित में हैं। यह पारस्परिक सम्मान, पारस्परिक हित और पारस्परिक संवेदनशीलता के आधार पर संबंधों को संभालने से ही संभव है। हम पहले भी इस बात पर सहमत हुए हैं कि मतभेद विवाद नहीं बनने चाहिए और न ही प्रतिस्पर्धा कभी संघर्ष में बदलनी चाहिए। इस आधार पर, अब हम अपने संबंधों को सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ा सकते हैं।”
डा. जयशंकर ने आतंकवाद को साझा चिंता का विषय बताते हुए उम्मीद जतायी कि मंगलवार को होने वाली बैठक में आतंकवाद को कतई न बर्दाश्त करने की नीति को दृढ़ता से कायम रखा जायेगा। उन्होंने कहा ,“ आज की हमारी बैठक में वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान भी शामिल होगा। कल हम एससीओ के प्रारूप में मिलेंगे, जिसका प्राथमिक उद्देश्य आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद का मुकाबला करना है। यह एक साझा चिंता का विषय है और भारत आशा करता है कि आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता की नीति को दृढ़ता से बरकरार रखा जाएगा।”
उन्होंने कहा कि दोनों देश राजनयिक संबंधों की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। भारत इस अवसर पर पांच वर्ष के अंतराल पर कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू किये जाने पर चीन को धन्यवाद देता है।
