इमरान हाशमी बोले- ‘हक’ फिल्म में महिलाओं के अधिकारों की बात की गई है, किसी धर्म के खिलाफ नहीं है

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बॉलीवुड एक्टर इमरान हाशमी इंडस्ट्री के जाने माने स्टार हैं। इमरान इन दिनों अपनी अपकमिंग मूवी ‘हक’ में नजर आने वाले हैं। इस कानूनी ड्रामा ‘हक’ को लेकर इमरान लगातार सुर्खियों में हैं। इस मूवी में इमरान के साथ एक्ट्रेस यामी गौतम लीड रोल में हैं। मूवी में इमरान एक फेमस वकील के किरदार में हैं। फिल्म में इमरान अपनी पत्नी यानी यामी को तीन बार तलाक बोलकर उन्हें तलाक देते हैं और इसके अलावा भरण-पोषण के लिए कोई पैसा नहीं देता। इसके लिए उनकी पत्नी उन्हें कोर्ट तक खींचती हैं। ऐसे में अब इमरान ने इसी मुद्दे को लेकर महिलाओं के अधिकार पर बात की।

हम सोचते हैं कि यह पुरुषों की दुनिया है

इमरान हाशमी ने हाल ही में एएनआई को अपना इंटरव्यू दिया। इस दौरान इमरान ने बात करते हुए कहा, ‘यह एक महिला की आवाज की कहानी है। यह समानता की कहानी है। यह सम्मान के एक निश्चित अधिकार की कहानी है। यह पुरुषों की भी कहानी है। मुझे लगता है कि बरसों से चली आ रही समाज में पुरुषों की एक सोच बन चुकी है कि हम सोचते हैं कि यह पुरुषों की दुनिया है, और हम जो कर सकते हैं, करेंगे, और इससे एक महिला को अपनी गरिमा की कीमत चुकानी पड़ती है। यह इस फिल्म में दिखाया गया है। अगर आप इस पर आत्मचिंतन करेंगे, तो आपको इस फिल्म में मूल्य मिलेगा। पुरुषों के लिए भी।’

हमने महिलाओं के अधिकारों की समानता का मुद्दा उठाया है

एक्टर ने इंटरव्यू में आगे कहा कि यह फिल्म ‘महिलाओं के पक्ष में’ है, किसी समुदाय या धर्म के खिलाफ नहीं। उन्होंने बताया, ‘यह एक ऐसी फिल्म है, जहां से जब आप थिएटर से बाहर निकलेंगे, तो पाएंगे कि यह महिलाओं के पक्ष में है और हमने उनके सम्मान और उनके अधिकारों की समानता का मुद्दा उठाया है। लेकिन साथ ही, अगर आपको लगता है कि लास्ट में फिल्म के दौरान, अहमद भी अब्बास भी कहते हैं, जो अपनी नजरिए से कि जो माहौल में पला बढ़ा था, जो उसकी कंडीशनिंग थी, वो सही था अपनी तरफ तो हमने अपना काम कर लिया। हम किसी पर उंगली नहीं उठा रहे हैं। हमने आपको बस बहुत ही निष्पक्ष तरीके से मामला दिखाया है। और फिर यह आप पर निर्भर है कि आप थिएटर से कैसे बाहर निकलते हैं।’

शाह बानो मामला क्या है?

1978 में, शाह बानो बेगम ने इंदौर की अदालत में एक याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने अपने तलाकशुदा पति, मोहम्मद अहमद खान, जो एक अमीर और जाने-माने वकील थे, से गुजारा भत्ता मांगा। दोनों की शादी को 46 साल हो गए थे और उनके पांच बच्चे थे। आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि शाह बानो गुजारा भत्ता पाने की हकदार हैं। इस मामले को भारत में मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की लड़ाई में एक कानूनी मील का पत्थर माना जाता है। हालांकि, 1986 में, राजीव गांधी सरकार ने एक नए कानून के जरिए इस फैसले को रद्द कर दिया।

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