प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने पिछले आठ वर्षों में अब तक की सबसे बड़ी कर कटौती की दिशा में कदम उठाने का ऐलान किया है। इस कदम से सरकार की आमदनी पर दबाव तो बढ़ेगा, लेकिन उद्योग जगत और राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार यह मोदी की छवि को मज़बूत करने वाला फैसला साबित होगा, ख़ासकर उस समय जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनातनी जारी है। इसके अलावा, इस फैसले का बिहार विधानसभा चुनावों पर भी काफी असर पड़ सकता है।
हम आपको बता दें कि सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में व्यापक बदलाव करते हुए कई रोज़मर्रा की चीज़ों और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को सस्ता करने की दिशा में कदम बढ़ाये हैं। नया कर ढांचा अक्टूबर से लागू होगा। टूथपेस्ट, साबुन, हेयर ऑयल, मोबाइल फ़ोन, कंप्यूटर, सिलाई मशीन, साइकिल, एल्यूमीनियम और स्टील के बर्तन, ब्रांडेड परिधान और कई प्रकार की दवाइयाँ अब कम दाम पर उपलब्ध होंगी। इससे उपभोक्ताओं के साथ-साथ उद्योग घरानों को भी लाभ मिलेगा।
हालाँकि, इस राहत की एक बड़ी क़ीमत भी है। चूँकि जीएसटी सरकार के राजस्व का प्रमुख स्रोत है, ऐसे में कर कटौती से केंद्र और राज्यों को हर साल लगभग 20 अरब डॉलर का नुक़सान होगा। वहीं, आईडीएफसी फर्स्ट बैंक का अनुमान है कि इन कटौतियों से अगले 12 महीनों में भारत की जीडीपी में 0.6% की वृद्धि हो सकती है। इसके साथ ही विशेषज्ञों का मानना है कि जीएसटी सुधार का यह समयबद्ध निर्णय आर्थिक से ज़्यादा राजनीतिक रणनीति है। दरअसल बिहार विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं और बेरोज़गारी विपक्ष के लिए बड़ा मुद्दा बना हुआ है। ऐसे में कर कटौती जनता को प्रत्यक्ष लाभ पहुँचाकर भाजपा के पक्ष में माहौल बना सकती है। हम आपको याद दिला दें कि इस बार के आम बजट में 12 लाख रुपए तक की आय को कर मुक्त कर दिया गया था जिससे भाजपा को दिल्ली विधानसभा चुनावों में 1993 के बाद पहली बार जीत मिली थी।
इसके अलावा, हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से आने वाले उत्पादों पर 50% तक टैरिफ बढ़ा दिए हैं। इसके जवाब में प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में देशवासियों से ‘मेक इन इंडिया’ उत्पादों का उपयोग करने की अपील की। यह घरेलू निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने और अमेरिकी दबाव का जवाब देने की कोशिश मानी जा रही है।
दूसरी ओर, भारत में 2017 में लागू हुए जीएसटी को आज़ादी के बाद सबसे बड़ा कर सुधार माना गया, जिसने पूरे देश को एक साझा आर्थिक ढाँचे में बाँध दिया। लेकिन इसकी जटिलता पर लगातार सवाल उठते रहे। जैसे– कैरामेल पॉपकॉर्न पर 18% और नमकीन पॉपकॉर्न पर 5% टैक्स लगाना। अब सरकार ने 28% वाले टैक्स स्लैब को लगभग समाप्त करने का फैसला किया है और 12% श्रेणी के ज़्यादातर सामानों को 5% पर लाया जायेगा। इससे उपभोक्ता वस्तुएँ और पैकेज्ड फ़ूड काफी सस्ते होंगे।
जीएसटी सुधारों पर आई ताज़ा ख़बरें संकेत देती हैं कि केंद्र सरकार अब इसे “अगली पीढ़ी का जीएसटी” कहकर एक व्यापक और सरल संरचना बनाने की ओर बढ़ रही है। मौजूदा चार स्लैब (5%, 12%, 18%, 28%) को घटाकर केवल दो मुख्य दरों (5% और 18%) तक सीमित करने तथा विलासिता और अहितकर वस्तुओं पर 40% विशेष कर लगाने का प्रस्ताव निश्चित ही एक बड़े बदलाव की ओर इशारा करता है।
देखा जाये तो जीएसटी की कम दरों का सीधा असर रोज़मर्रा की वस्तुओं और वाहन जैसे महंगे उत्पादों पर पड़ेगा। इससे आम उपभोक्ता की जेब पर बोझ घटेगा और खपत बढ़ेगी। साथ ही वर्गीकरण विवाद, जैसे छोटी कार बनाम एसयूवी या नमकीन पॉपकॉर्न बनाम कैरामेल पॉपकॉर्न जैसी जटिलताओं को सुलझाने में मदद मिलेगी।
इसके अलावा, मोदी सरकार का दीर्घकालिक लक्ष्य एकल जीएसटी स्लैब की ओर बढ़ना है, जो विकसित देशों की तरह एक समान आय-व्यय क्षमता पर आधारित व्यवस्था होगी। फिलहाल 2047 तक इस संभावना का अनुमान जताया गया है। इसका मतलब है कि मौजूदा सुधार “मध्यवर्ती पड़ाव” हैं, जिनका अंतिम उद्देश्य कर व्यवस्था को पूरी तरह सरल और स्थिर बनाना है। देखा जाये तो अगली पीढ़ी का जीएसटी आर्थिक सुधारों का महत्त्वपूर्ण पड़ाव है, जो उपभोक्ता हित और कारोबारी सुगमता दोनों को साधने की कोशिश करता है। लेकिन इसकी स्थायित्व क्षमता तभी साबित होगी जब सरकार राजस्व घाटे की भरपाई के व्यावहारिक समाधान पेश करे और राज्यों के साथ सहमति बनाए रखे। यह सुधार निश्चित ही “कराधान की राजनीति” और “आर्थिक रणनीति” दोनों का मिश्रण है।
हम आपको बता दें कि सरकार को इस समय सबसे अधिक कर संग्रह (65%) 18% वाले स्लैब से होता है। 28% वाले स्लैब से कुल राजस्व का 11% आता है, जबकि 12% वाले स्लैब से केवल 5% की आमदनी होती है। आवश्यक वस्तुओं पर लगने वाला 5% का न्यूनतम कर स्लैब केंद्र के कुल जीएसटी राजस्व में 7% का योगदान करता है। जीएसटी दरें घटने के बाद कई वस्तुएँ, जिन पर पहले 12% या 18% कर लगता था, अब 5% स्लैब में आ जाएँगी और उपभोक्ताओं के लिए सस्ती हो जाएँगी। जो चीजें सस्ती होने जा रही हैं यदि उनका जिक्र करें तो आपको बता दें कि इसमें दंतमंजन, बालों का तेल, साबुन (सभी श्रेणियाँ), टूथपेस्ट (कुछ ब्रांडेड किस्में), छाते, मोबाइल फ़ोन, प्रोसेस्ड फूड, कंप्यूटर, सिलाई मशीनें, जल फ़िल्टर और नॉन-इलेक्ट्रिक प्यूरिफ़ायर, प्रेशर कुकर, इलेक्ट्रिक इस्त्री (Iron), गीजर, वैक्यूम क्लीनर (लो-कैपेसिटी, गैर-व्यावसायिक), विकलांग व्यक्तियों के लिए गाड़ियाँ, रेडीमेड वस्त्र (₹1,000 से अधिक मूल्य वाले), जूते-चप्पल (₹500 से ₹1,000 तक), अधिकांश वैक्सीन, एचआईवी, हेपेटाइटिस, टीबी की डायग्नोस्टिक किट्स, कुछ आयुर्वेदिक और यूनानी दवाइयाँ, अभ्यास पुस्तिकाएँ (Exercise books), ज्योमेट्री बॉक्स, नक्शे और ग्लोब, एल्युमीनियम और स्टील के बर्तन, साइकिलें, नॉन-केरोसिन स्टोव, बारबेक्यू, लिक्विड सोप, सार्वजनिक परिवहन वाहन (बेचने पर, किराये पर नहीं), ग्लेज़्ड टाइल्स (साधारण, गैर-लक्ज़री), प्री-फैब्रिकेटेड बिल्डिंग्स, वेंडिंग मशीनें, कृषि उपकरण जैसे मैकेनिकल थ्रेशर, पैकेज्ड फूड (जैसे कंडेंस्ड मिल्क, जमी हुई सब्ज़ियाँ– कुछ किस्में), सोलर वॉटर हीटर, दिवाली से सस्ती होंगे।
इसके अलावा 18% और 28% टैक्स वाली वस्तुएँ भी सस्ती होंगी जैसे बीमा (Insurance) पर जीएसटी की दर 18% से घटकर 5% हो जायेगी, कुछ मामलों में यह शून्य हो जायेगी, इसके अलावा सेवा क्षेत्र (Service sector) में जीएसटी दर के बारे में संभावना है कि यह 18% पर ही बनी रहेगी, साथ ही सीमेंट, रेडी-मिक्स कंक्रीट, एयर-कंडीशनर, टेलीविज़न, रेफ़्रिजरेटर, वॉशिंग मशीन, कार और मोटरसाइकिल सीटें (कुछ पर अलग दरें लग सकती हैं), रेल इंजन पर छत पर लगे पैकेज एसी यूनिट्स, एरेटेड वॉटर, डिशवॉशर, व्यक्तिगत उपयोग के लिए विमान, प्रोटीन कॉन्सन्ट्रेट, शुगर सिरप, अरोमा कॉफ़ी, कॉफ़ी कॉन्सन्ट्रेट, डेंटल फ्लॉस, व्यावसायिक प्लास्टिक उत्पाद, रबर टायर (साइकिल और कृषि वाहनों के लिए कम दरें), प्लास्टर, टेम्पर्ड ग्लास, एल्युमीनियम फॉइल, रेज़र, मैनीक्योर/पेडिक्योर किट्स और प्रिंटर भी सस्ते होंगे।
बहरहाल, मोदी सरकार का यह कदम उपभोक्ताओं के लिए “दीपावली का तोहफ़ा” साबित हो सकता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह लंबे समय तक टिकाऊ रहेगा? राजस्व में भारी गिरावट से राज्यों और केंद्र की वित्तीय स्थिति पर दबाव बढ़ सकता है। राजनीतिक लाभ तो निश्चित है, लेकिन आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए सरकार को वैकल्पिक रास्ते तलाशने होंगे।
