कोर्ट बदलने की मांग खारिज: हाईकोर्ट ने वकीलों के बीच लड़ाई के मामले में दिया फैसला

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बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज एक केस में जज बदलने की याचिका खारिज कर दी है। यह याचिका एक वकील ने इसलिए लगाई थी क्योंकि उसे निचली अदालत से जमानत नहीं मिली थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि उसे पीठासीन अधिकारी से निष्पक्ष सुनवाई की उम्मीद नहीं है, इसलिए मामला दूसरी कोर्ट में भेजा जाए। लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि सिर्फ संदेह या आशंका के आधार पर कोई भी केस एक कोर्ट से दूसरी कोर्ट में नहीं भेजा जा सकता।

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मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि जब तक किसी जज पर पक्षपात के ठोस प्रमाण न हों, तब तक मामले को स्थानांतरित करने का कोई कारण नहीं बनता। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत का काम जाति, धर्म, रंग नहीं देखना नहीं है, बल्कि सच और झूठ के आधार पर फैसला करती है। पांच साल पहले एक अनुसूचित जनजाति वर्ग की युवती, जो उस समय कानून की छात्रा थी, ने ओबीसी वर्ग के एक वकील पर शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाने और गर्भवती करने का आरोप लगाया था।

पीड़िता ने आरोपी वकील के खिलाफ थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी। उसने अन्य वकीलों के खिलाफ भी अनुसूचित जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कराई थी, जो जिला न्यायालय में प्रैक्टिस करते हैं।पुलिस ने मुख्य आरोपी वकील को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया था। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी की जमानत अर्जी खारिज कर उसे जेल भेज दिया। इसके बाद वकील ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी कि केस को किसी अन्य कोर्ट में स्थानांतरित किया जाए। हाईकोर्ट ने कहा कि इस तरह की याचिकाएं तभी स्वीकार होती हैं जब पक्षपात के स्पष्ट प्रमाण हों। चूंकि आरोपी और शिकायतकर्ता दोनों ही अधिवक्ता हैं, इसलिए किसी भी एकतरफा आरोप के आधार पर कोर्ट बदलना संभव नहीं है।

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